मारी सहाय करो न गिरधारी।
विपत काल हरणी वो
हरि ने पुकारी।।टेर।।
बन मांय रहती फर फर चरती,
बन में विपदा डारी।
संकट में इक बंकट उपज्यो,
आण खड़ा तो शिकारी।।1।।
एक दसा ने फन्द तणाया,
दूजी न अगन लगाई।
तीजी दसा में श्वान बिठाया,
चौथी दसा में शिकारी।।2।।
चाल्या रे पावन टूट गया फन्दा,
अगनी ने इन्दर बजोई।
छूटा रे बाण श्वान के लागा,
डस गयो नाग शिकारी।।3।।
उठ रे मुरगली नाचण लागी,
सांवरां ने सूहली रे बिचारी।
कहत कबीर सुणो भाई साधू,
सहाय करी गिरधारी।।4।।
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