मानो भाया जीवत जोवे जांकी मुकती है।
मरिया पछे रे भाया झूठी जुगती,
बलिहारी गुरां ने ।।टेर।।
व्यभिचारी नार पिया जी ने नहीं जाणे रे,
कपट गांठ दिल रखती है ।
पतिव्रता नार पियाजी की प्यारी,
नरख बदन चख चखती ।।1।।
लोचन ज्ञान हियो घट भीतर,
दुर्मत गई अफरती है।
भरम करम कछू नहीं व्यापे,
करणी जावे नसंगती ।।2।।
ज्ञान की रे टेक भाया म्यान मांयू निकली रे,
ठपकारी धक धकती है।
भरम मोरचा पे ऐसी ठपकारी रे,
कमीयन राखी लग लगती ।।3।।
नेडा नेडा निकट अखण्ड अविनाशी,
कह न सकू सक सकती है।
ले चसमा दरबीण लगाई रे,
जागी जोत भभगती ।।4।।
अनुभव ज्ञान हियो घट भीतर,
सतगुरू मिलग्या समरथी है।
कहे ''बिहारी'' यो देश दिवानों वो,
उल्ट चढ्या मन मस्ती ।।5।।
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