दोहा: जिनको राखे सांईया
मार सके ना कोई।
बाल न बांका कर सके जो जग बेरी होई।।
कारीगर थू क्यू भटके रे,
कारीगर थू क्यू भटके रे।
मारे ईश्वर रे भगता को काज,
कदीयन अटके रे।।टेर।।
कारीगर पत्थर घड़े,
पत्थर में पायो छेद।
छेद में कीड़ो बैठो रे भाया,
नहीं बचण की उम्मेद।।
दाणो वांके मुख में लटके रे।।1।।
दोहा: अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गये सबके दाता राम।।
कारीगर करतार ने,
करबा लागो याद।
अतरा दिन सोच्यो नहीं,
मारा दन गया बरबाद।।
कारीगर बैठो डड करके रे।।2।।
जंगल में मंगल भया,
तो चरू पाया जमी डोट।
कारीगर केवे करतार ने,
दाता थू ही बोधकर पोट।।
घरा मारे क्यू न पटके ।।3।।
दोहा : दाख फले बैसाख में,
होवे काग गल रोग।
करमहीन को न मिले,
शुभ वस्तु को भोग।।
चोरां ने चरचा सुणी,
चुरू को लिया निकाल।
करमहीन भटकत फिरे रे भाया,
धन का हे गया व्याल।।
बात चोरां के खटके रे।।4।।
ले जांवा छत ऊपरे,
चरू के ढक्कन लगाय।
कारीगर पे डाल दां,
सांप उणी ने खाय।।
कारीगर मर जावे झटके रे।।5।।
चोर चढिया छत ऊपरे,
छत को लिया उखाड़।
माधू केवे भगवान ने रे,
दाता देवे छप्पर फाड़।।
कारीगर गण ले भटके रे।।6।।
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