कका बतीसी कहत हूं सुणो सभी चित लाय k ka batisi kahat hu suno sabhi chit laay



कका बतीसी कहत हूं,
सुणो सभी चित लाय।
पढ़े सुणावे और ते,
भव फांसी कट जाय।।1।।


कट जाय जमरी फांसी,

सेंस गुणा फल होय।

लिखमा सार भजन में,

भजन करे चित गोय।।2।।


कका भज किरतार कूं,

सनमुख सिमरण सार।

कर सिमरण सांसा मिटे,

हरि भज जन्‍म सुधार।


हरि भज जन्‍म सुधार,

हरि लिव लावणी।अरे हां हरि भज,

मत चूकाओ,

डांव बार है पांवणी।


खखा काया खोजकर,

धर हरि को इतबार।

तन का तिवर मिटाय कर,

काढो भर्म बिडार।


काढो भर्म बिडार,

शब्‍द सत् गुरु का गेहो।अरे हां हरि भज,

समझ शब्‍द संग होय,

 अवगत रस रहो।।


गगा गर्व न कीजिये,

देह गुमराही छोड़।

ज्ञान गरीबी धारिये,

हरि भजिये कर कोड।।


हरि भजिये कर कोड,

छोड़ मैमत मता अरे हां।

हर भज क्षमा बड़ी अंग,

आण सन्‍त मताए छता।।3।।


घघा घातो छोड़ कर,

नाम न केवल जाण।

नाम लिया निर्भय हुया,

परस्‍या पद निर्वाण।।


परस्‍या पद निर्वाण,

जान जप जोग मता।अरे हां हरि भज,

सन्‍त भया निशंक,

वे सन्‍त निर्भय मता।।4।।


डडा डेता पुरुष की,

रामत जभि बिच जोय।

क्‍या क्‍या लावां लो लिया,

हार जन्‍म गया खोय।।


हार जन्‍म गया खोय,

सुकृत ना किया। अरे हां हरि भज

डडवाडि़ता रीता जाय,

लार कुछ ना लिया।।5।।


चचा चेतन पुरुष को,

चेतो राख चितार।

भूलो फिरे चोतो कर,

इण विध आण विचार।।


इण विध आण विचार,

तार ले जीव कूं।अरे हां हरि भज, 

परगल प्रीत लगाय,

परसले पीव की।।6।।


छछा छोड़ो आपदा,

मेटो मन अभिमान।

दया भई गुरु देव री,

उपज्‍यो आतम ज्ञान।।


उपज्‍यो आतम ज्ञान,

अरूप पिछाणिया। अरे हां हरि भज, 

होय एकन्‍त चित धार,

परम सुुख माणियो।।7।।


जजा जागत साेेेेवतां,

निस दिन भजिये राम।

जीवे जब लग राम भज,

जब जीव कूं विश्राम।।


जब जीव कूं विश्राम,

राम सूं रत रयो। अरे हां हरि भज,

 रेरेकार धुन लाय,

मुक्‍त फल तब लयो।।8।1


झझा झूइी बात में,

मन उलज्‍यो मोहा जाल।

एक हरि सिमरण बिना,

बीजो सब जंंजाल।।


बीजो सब जंंजाल,

काल काचार सब। अरे हां हरि भज,

हर लिव जाय,

तारसी श्‍याम तब।।9।।


टेटा टेक समाय कर,

सिमरो स्‍वांस उसांस।

अलख लिखो अजपा जपो,

आणो यूं विश्‍वास।।


आणो यूं विश्‍वास,

पास पिव संग रमे। अरे हां हरि भज,

ओलख धर विश्‍वास,

के ओसर इण समय।।10।।


ठठा ठावो ठीक कर,

अलख ईस विध जोय।

खालक बिना खाली नहीं,

रमे अपर छन्‍द होय।।


रमे अपर छन्‍द हो जोय,

मन जाणिये। अरे हां हरि भज,

तन मन पर्चा होय,

तो अलख पिछाणिये।।11।।


डडा डर कर हालीये कर,

कर्णी तत् सार।

कंवल केवल में मता,

इण विध सिवरण सार।।


इण विध सिवरण सार,

सकल सांसा मिटे। अरे हां हरि भज, 

कर सिमरण नहीं कोपणा,

कर्म इण विध कटे।।12।।


ढढा ढील न कीजिये,

 हरि भज हो हुसियार।

जगत जावत जोय कर,

स्‍वप्‍ने ज्‍यूं संसार।।


स्‍वप्‍ने ज्‍यूं संसार,

हार मतहरि भजो। अरे हां हरिभज,

धरी धणीसूं ध्‍यान,

सिवरण ओ सजो।।13।।


णणा रहता पुरुष कूं,

सत शब्‍दों मिल जाण।

रहता सूं रत मिल रहे,

जब छूटे चारो खाण।।


छूटे चारो खाण,

जीव पीव एक रता। अरे हां हरि भज

 से सन्‍त निर्भय भयो,

आण इसड़ो मता।।14।।


ततां तन में ठीक करे,

रहे रूम रूम बिच राम।

रूम रूम बिच जाणिये, 

तब पावे निर्भय धाम।।


तब पावे निर्भय धाम,

करो धुन ध्‍यान में। अरे हां हरि भज,

जब धोखा मिट जाय,

रहो गुरु ज्ञान में।।15।।


थथा हर के नाम है,

जांके रंग न रूप।

रंग रूप सब शक्ति का,

ओ तो अलख अरूप।।


ओ तो अलख अरूप,

धूप नहीं छांव है। अरे हां हरि भज,

जल नहीं शीला होय,

सकल के माय है।।16।।


ददा दुबद्या मेट कर,

अलख इस विध जोय।

राम अरू रहीम एक है,

तू मत जाणे दोय।।


तू मत जाणे दोय,

ब्रह्म सब ही कहे। अरे हां हरि भज,

दबद्या दोजक जाय,

भेद बिना भर्मत रहे।।17।।


धधा धीरज धार के,

कर दया धर्म को पाण।

दोन जांकूं देवसी,

सेंस गुणा प्रवाण।।


सेंस गुणा प्रवाण,

दाता देवसी। अरे हां हरि भज,

मस्‍तक लिखाये अंक,

लिख्‍या सो लेवसी।।18।।


नना निस दिन भटक रयो,

मो‍ह माया के साथ।

भजन बिना भूलो फिरे,

कछु नहीं आयो हाथ।।


कछु नहीं आयो हाथ,

साथ क्‍या चालसी। अरे हां हरि भज,

सुकृत सिमरण बिना,

अन्‍त चौरासी मालसी।।19।।


पपा प्रथक पथ मेंं ले,

सुकृत सिमरण साथ।

होत पखाले हाथ हाथ,

साथ लेसा ही चालसी।अरे हां हरि भज,

ले सुखरत सिमरण साथ,

जब वो सरगां मालसी।।20।।


फफा फेर पिछतावसी,

सुकृत सिवरण बिना।

अन्‍त अन्‍धा कर्म बन्‍ध्‍या,क्‍या ले जावसी,

पर्यो चौरासी फन्‍दा।।


पर्यो चौरासी फन्‍द,

जमा बन्‍ध्‍यो जावसी।अरे हां हरि भज,

सहसी जम की मार,

कुण छुड़ावसी।।21।।


बबा बयार डोल मत,

कर्मो बण्धियो कांय।

तीन लोक तारण तिरण,

अन्‍दर बोले मांय।।


अन्‍दर बोले मांय,

अरे हां हरि भज।

त्रिभण तारे तोय,

भय सारे भगे।।22।।


भभा भजन की प्रीत सुण,

तीरिया सन्‍त अनेक।

भजन किया भव छूटसी,

इण विध करो विवेक।।


इण विध रखो विवेक,

टेक हरि नाम सूं। अरे हां हरि भज,

ज्‍यां परस्‍या पद निर्वाण,

तिरे निज नाम सूं।।23।।


ममा हूं मानसिंह थको,

भूलो अंध अजाण।

चाल्‍यो नर्का जावसी,

करड़ाई के पाण।।


करड़ाई के पाण,

कहुं मैं में भयो। अरे हां हरि भज,

जो पडि़या नारका मांही,

करियो जैसी ही भरयो।।24।।


यया यह अवसर भल आवियो,

मनुष्‍य जन्‍म इसिवार।

लगन लगे गुरु धर्म सूं,

कीजे पर उपकार।।


कीजे पर उपकार,

खूब है खलक में । अरे हां हरि भज,

रहो खालक सूं खुसियाल,

तारसी पलक में।।25।।


ररा रेण दिन रत रयो,

मोह माया के साथ।

अन्‍त काल तब आवियो,

कोई न चाल्‍यो साथ।।


कोई न चाल्‍यो साथ,

पछे पछतावसी। अरे हां हरि भज,

किये कांटे आप,

आप के जावसी।।26।।


लला हर की लगन मेंं,

मगन रहो दिन रात।

विघन सब टल जावसी,

टलसी जम की घात।।


टलसी जम की घात,

सिमरण सेल सूं। अरे हां हरि भज,

पकड़ शब्‍द समसेर,

निर्भय होय तूं।।27।।


ववा ब्रह्म विचार ले,

सतगुरु कीजे सेण।

जन्‍म मरण भय मिट गया,

 भाखो अमृत बैण।।


भाखो अमृत बैण,

इस विध जोयरे। अरे हां हरि भज,

मन का मैल मिटाय,

अकृम सब खोयरे।।28।।


हहा हरि दरयाव में,

रही त्रसणा संग संसार।

हरिजन हरि रस पीवता,

मन की तृष्‍णा मार।।


मन की तृष्‍णा मार,

कर्भ जायो जुवा। अरे हो हरि भज,

जे तनकी तपत बूझाय,

सन्‍त निर्भय हुवा।।29।।


आईड़ा आई मली,

मनुष जनम सी मौज।

जे सुख चावे जीवकूं,

हर भजीये कर कोड।।


हर भजीये कर कोड,

चेत चितारिये। अरे हां हरि भज,

है निर्भय नाम पिछाण,

जीवण तारिये।।30।।


ईया कीया आपणा,

आपो आप लहंत।

किया सो कर्ता लिख्‍या,

कर्म कपाली अंक।।


कर्म कपाली अंक,

लिख्‍या सोही लेवसी। अरे हां हरि भज,

वे दु:ख दाता नहीं,

किसी कूं क्‍यूं देवसी।।31।।


उड़ा कुड़ा बंध कर,

जोड़ी माया मन1

निसदिन की रही आपदा,

तड़फत तोरया तन।।


तड़फत तोरया तन,

आपदा विधायो नहीं। अरे हां हरि भज,

अन्‍त न चालसी साथ,

घर घर में रहो।।32।।


ईड़ोए बखत रत रहो,

अवगत रत रहो लोय।

ए कका बतिसी लिखमा,

सरबंग सब में जोय।।


सर्वंग सब में जोय,

जूवा क्‍यू जाणीये। अरे हां हरि भज,

ओ तो अलख अरूप,

अर्थ पिछाणीयेे।।33।।


सम्‍मत 1966 माय कीयो ग्रंथ विस्‍तार।

ए महिमा सत लोक की,

कोई करे सो उतरे पार।।


कांई करे सो उतरे पार,

जाण्‍यो सोही पावसी। अरे हां हरि भज,

अखंड रहे लिव लाय,

गर्भ नहीं आवसी।।34।।


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