जोगाराम थारो मारग बांको रे,
ध्यान हरि का तुम राखो रे।।टेर।।
गढ़ गिरनार चढ़ो मन मेरा रे,
इधर उधर कई जांको रे ।।1।।
खाण्डा की चाल चलाे मन मेरा रे।
असल सूई वालो नाको रे ।।2।।
लाम्बो सांठो गून्द गली को।
पेड़ी पेड़ी को रस चाखो रे ।।3।।
खारा समन्द बिच अमृृत बेरी।
साधुु पीवे जल वाको रे ।।4।।
भंवर गुफा मांये तपसी तापे।
बिना अगन तप कांको रे ।।5।।
कहत ''कबीर'' सुणो भाई साधू।
कन फड़ाया जोगी कांको रे ।।6।।
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