घनश्याम मुरारी रे
छोटो सो नन्दलाल
कन्हैयो मुरली वालो रे।।टेर।।
खांदे काली कामली रे,
घूघी घेर घुमेर,
केशरिया टोपा के माथे,
फूंदा चारों मेर।
वांकी शोभा मन में भावे रे,
गोकल रा कांकड़ में कानो धेनु चरावे रे।।1।।
डूंगर माथे बैठ के ऊ
देवे छे आवाज,
काली पीली झूमर धोळी
गायां आवे पास।
वांने घेर घरां में लावे रे,
गोकल रा कांकड़ में कानो धेनु चरावे रे।।2।।
नन्दबाबा को लाडलो रे
गणी उधम की खान,
आती जाती गुजरियां से
मांगे दही को डांड।
वो तो माखणियो घटकावे रे,
गोकल रा कांकड़ में कानो धेनु चरावे रे।।3।।
कदी घड़ी को खेल करे छे
कदी घड़ी को रास,
कदी गोप ग्वाल्या ने संग ले
रचे अनोखो राच।
वो तो राम रसियो गावे रे,
गोकल रा कांकड़ में कानो धेनु चरावे रे।।4।।
थू हे सतगरू सांवरा
मारा भव बन्धन ने टार,
‘दास राम’ ने भजन बणायो
अलगोचा की ताण।
मारो चित चरणां में लागो रे,
गोकल रा कांकड़ में कानो धेनु चरावे रे।।5।।
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