दस दोष दूरा टालज्‍यो भजन लिरिक्‍स dus dosh dura taljyo bhajan



मूल मंजन करत करीये,

गणपती का ध्‍यान धरीये।

संत सेवा से साध तरीये,

करत धरम निज धार।।

ओ धर्म धारज्‍यो है,

दस दोष दूरा टालज्‍यो ।।1।।


भगती का बड़द समालज्‍यो,

थे धावो धर्म निज धार ।

जरणा जारज्‍यो है,

दस दोष दूरा टालज्‍यो ।।टेर।।


काया नगरी खोज देखो,

मांगेलो करतार लेखो ।

ओगण गाला दूरा राखो,

पड़ो चरणां जाय।। 

चरण पखारज्‍यो है ।।2।।


एक बाणी गई ऊंची, 

दूसरी घर महल पूंची ।

तीसरी कंठ कंवल पूंची,

चौथी निकली बार ।। 

ममता मारज्‍यो है ।।3।।


एक बाणी सरव ज्ञानी,

दूसरी कोई भला पछाणी।

तीसरी मत तंत छाणी,

चौथी है दीदार।।

धीरप धारज्‍यो है ।।4।।


चार खाणी चार वाणी,

चार वेद अठारा पुराणी।

जीमूं निज वस्‍तु पछाणी,

आवतु अदकार।।

 सिमरण सारज्‍यो है ।।5।।


दोष टालो दिया पालो,

अबक बाणी के देत तालो।

पुरुष बोले जाणे नाळो,

ओलखो रणुकार।।

समझ बिचारज्‍यो है ।।6।।


नाभी मू दस नाड़ उलटी,

देख सूनी पांच लूटी।

पांचो मुद्रा जात उलटी,

खुल्‍या दसवा द्वार ।।

भीतर नालज्‍यो है ।।7।।


दसो मांयने तीन नाड़ी,

एक होय खड़की उगाड़ी।

खुली खड़की होय उजाली,

निरया निराधार ।।

बुझ बिचारज्‍यो है ।।8।।


पांच तत्‍व पांचू शक्ति,

तीन गुण पचीस प्रकृति।

तेतीसा टकसाल जुड़ती,

वो तेरा परवार ।।

सुखमण सारज्‍यो है ।।9।।


बेकरी बत्‍तीस लिखिया,

बावन अक्षर वाही थकिया।

मात काना नाही लगिया,

सो वस्‍तु अदकार ।।

शुद्ध कर नालज्‍यो ।।10।।


उगम घर की खबर कीदी,

चढ़ पछम दरबीण दीदी।

पछम बारी ने हेर लीदी,

गऊ मकड़ी तार ।।

वा धुन धारज्‍यो है ।।11।।


बाजे मृदंग ताल मुरली,

लेर के संग टेर उरली।

शेख की आवाज उरली,

बन खण्‍ड झणकार ।।

तत्‍व बिचारज्‍यो है ।।12।।


आंदा होय ने करम पाले,

मर्या पछे मुगती नाले ।

मुक्ति व्‍हे जाने परी टाले,

जीवत मुक्ति सार ।।

साख समालज्‍यो है ।।13।।


रूपनाथ देव मलिया,

घट का कपाट खुलिया।

भ्रम गढ़ का कोट भलिया,

होवे जै जै कार ।।

बेड़ी मारी तारज्‍यो है ।।14।।


कहवे दोलो राख ओलो,

रतन कांटी में घाल तोलो।

आंधा होय ने मती डोलो,

अरज करे पुकार ।।

रतन समालज्‍यो हैै ।।15।।

 

जाप अजपा चाले प्‍यारी,

चले उलट गत मांय।

पीये परचे श्‍याम निजारी,

वा निरभे हो जाय ।।

चेतन समालज्‍यो हैै ।।16।।


इ मन के तीन शक्ति,

शुुुभ अशुभ और प्रकृति ।

घरणाई चोसठ घड़ी,

दो मण उलज्‍यो जाल ।।

संग निवारज्‍यो है ।।17।।


गगन में दस नाल गाजे,

घुघरिया घरवावल बाजे ।

शिखरगढ़ के बैठ सागे,

सुणज्‍यो जयकार ।।

लूम बिचारज्‍यो है ।।18।।


खोज काया तन्‍त पाया,

सुर सोला भेद गाया।

उरद धारा सूरा नाया,

जैलो अमृत धार ।।

सुरता धारज्‍यो  है दस दोष।।19।।

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