सायब ने भजो रे गंवारा,
कई सूतो रे बारम्बारा।
जनम लिया जां मरणा रे,
सायब आगे लेखा भरणा ।।टेर।।
बादीघर डंक लगाया,
भाई खलक तमासे आया।
बादीघर कला समेटी,
जद आप रिया अकेला ।।1।।
मारा सतगरु बाग लगाया,
भाई तीन लोक में छाया।
बाग बाग गुल क्यारी,
ज्यांकी शोभा अचरज भारी ।।2।।
पान फूल फल चावे,
बेलडिया सींचता रहिये।
बेलडिया फल लागा,
थारा जनम मरण भो भागा ।।3।।
भव सागर तरणो चावे,
नांवडियाऊ मलतो रहीये।
नावडिया पार लगावे,
थने अमर लोक ले जावे ।।4।।
थू दरसण करणो चावे,
दरपण ने माजतो रहिये।
दरपण में आवे काई,
थने दरसण होवेला नाई ।।5।।
कहे ''कबीर'' सा बाणी कोई,
जाणी वो जाण पछाणी।
कोई जाण पतीसा रीजे,
थू मूरख ने मत कीजे ।।6।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें