सहेल्या मंगल गावो ये,
सतगरू आया आज।
सतगरू आया आज,
जीवां का तारण जहाज ।।टेर।।
सोवनी सूरत दन चोखो,
मारे गरू मिलण रो मोको।
मिट जावे सब ही धोखो रे,
सुधर जावे सब काज ।।1।।
सदा इन्दर ज्यूं उठे,
वांके अमृत बचन मुख छूटे।
सुणता ही कुकर्म सब छूटे,
मारा सतगरू की आवाज ।।2।।
गरू गोविन्द अविनाशी,
मारी कटे लख चौरासी।
माने डूबत देख तरासी ओ,
दीनबन्धु महाराज ।।3।।
सतगरू केवल स्वामी,
मारे अविगत अन्तरयामी।
यो ''दानो'' करे सलामी जी,
बिलकुल राखी लाज ।।4।।
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