छ: छ: महीना का बालक कर दिया भजन लिरिक्‍स 6-6 mahina ka balak kar diya bhajan


:: सती अनुसुया ::

एक समय मुनि नारद चाल्‍या,
शिव शंकर के द्वार पे।
सती अनुसुया का नाम रटा वो,
धुन वीणा की तान पे ।।

सती अनुसुया का नाम सुणा जद,
बोलण लागी पार्वती।
नारद मेरे से बढ़कर,
है दुनिया में कौन सती।।

आप तो माता पहूंच सको नहींं,
उस नारी के केश को ।।1।।

छ: छ: महीना का बालक कर दिया,
ब्रह्मा विष्‍णु महेश को।
सतियां में एक सती अनूसुया,
धन पति उपदेश को।। टेर।।

वहां से तो मुनि नारद चाल्‍या,
विष्‍णु के निज धाम को।
सती अनुसुया की क्‍या कहूं माता,
क्‍या कहूं उस नाम को।।

ब्रह्माणी को सुणा दिया,
जा उस नारी सन्‍देश को ।।2।।

विष्‍णु से लछमी जी पूछेे,
शिव शंकर से पार्वती।
ब्रह्मा से ब्रह्माणी पूछे,
है दुनिया में कौन सती ।।

सांची सांची कह दो स्‍वामी,
छोड़ देवो न क्‍लेश को ।।3।।

एक तरफ से विष्‍णु जी चाल्‍या,
दूजी तरु से शिव शंकर।
तीजी तरफ से ब्रह्मा जी चाल्‍या,
ब्रह्माणी से घबरा कर ।।

एक जगह टकराये तीनों,
को भायां कित जाय रिया।
सबसे पहले शंकर आप,
विष्‍णु कहां जाय रहे ।।

हम जाते है उस नारी के,
सत डिगाने नेम को ।।4।।

सबसे पहले शंकर बोले,
सुणलो भायां बात खरी।
जगत् पिता कहलावां जग में,
हम तीनों की नीत फिरी।।

आपस में समझोता करलो,
कैसे सत डिगायेंगे।
वस्‍त्रहीन हो भोजन दे दे,
ऐसे वचन फरमायेंगे ।।

वस्‍त्रहीन होय भोजन दे दे,
द्वार खड़ा दरवेश को ।।5।।


इतना वचन सुणा है सती ने,
थरहर ही कम्‍पाय रही।
अब मेरी लाज राखो सांवरिया,
इज्‍जत दासी की जाय रही ।।

और जोर तो चला नहीं,
वा पति चरणां में जाय पड़ी।
पति केवे रवि साक्षी करले,
ऐसा ही उपदेश मिला।।

जल का लौटा छिड़क लेे,
और मना लेयने गणेश को ।।6।।

छ: छ: महीना का बालक कर दिया,
उनको दूध पिलाय दिया।
तीनों को अंचलो में लेकर,
पालणियां में सुलाय दिया ।।

वहां से तो मुनि नारद आया,
वीणा पर आवाज करी।
सती अनुसुया की क्‍या केऊ माता,
आकर जय जयकार करी ।।

वहां से तो मुनि नारद चाल्‍या,
मना लियो न गणेश को।।7।।

शंकर भवन में पग धरे तो,
पार्वती जी रोय रिया।
विष्‍णु भवन में पग धरे तो,
लछमी जी बेसुद पड्या।।

ब्रह्माणी की क्‍या कहूं सजनों,
रो रो के वो गाती है।
कहां गये वेदों के दाता,
ऐसे आवाज लगाती है ।।

नारद को गुरू मानकर,
पहुंचों सीधे धाम को ।।8।।

हाथ जोड़कर लछमीजी बोल्‍या,
शीश झुकाकर पार्वती।
ब्रह्माणी यूं उठकर बोली,
मैं तो मरी मने मारे मती।।

गरभ करे जो हारे जगत में,
या दुनिया की रीत गती।
मांका पति ने सागे रूप दे दे,
थू दुनियां में मोटी सती ।।

''भगतदास'' चरणां को चाकर,
पद गायो पति प्रेम को ।।9।। 



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