राम रामदे तू रहमान, पार ब्रह्म थारा करू बखाण।।टेर।।
सारद सिंवरू सुद बुद बाण
गणपत स्वामी करू बखाण ।
कीरत करू कंवर थारी जाण,
हृदय बख्सो इवरल बाण ।।१।।
नरसिंह रूप अवतरया आण,
हाथर पटकी हांकरे पाण।
प्रहलाद भगत री प्रीत पिछाण,
हरणाकुश रो मार्यो माण ।।२।।
जमन रिषि घर अवतरया आण,
परशुराम प्रकट पावाण।
लिनो बैर पिता रो जाण,
राक्षस मार्यो फरसे रे पांण।।३।।
दशरथ घर अवतरया आण,
पाणी पर तारया पाखाण।
लंका लीवी आपरे पांण,
दीनाेे राज विभिषण जाण ।।४।।
मथुरा में अवतरया आण,
कृष्ण कला रमियो बहुत जाण।
मारयो कंश फेर दीवी आन,
नही करती कृता री काण।।५।।
कर गिरवर धोर्यो पाखाण,
इन्द्र अभिमान मेटियो जाण।
द्वारका मे अवतरया दीवान,
जद रणछोड़ बाजियो आण।।६।।
अजमल घर अवतरया आण,
कुमकुम कदमों पड़ी पछाण ।
मारयो देत दुनिया दुख जाण,
उण खांवद राए एनांण।।७।।
बोपारी वचना रे पांण,
डूब्या उपर कृपा कर आण।
पड़ते पासे करी पिछाण,
साहूकार ने तारयो जाण।।८।।
दातादेव अरू दुनिया दिवान,
रब ज्यूं राज तपो रहमान।
लिखमा कहे लखो हरि बाण,
दुरमत मेट एककर जाण।।९।।
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