जागता पीर जोतधारी, रामा श्याम सिफत क्या कहुं थारी।।टैर।।
निकलंक रूप रम्या रूणीचे,
निर्भय थको कलाधारी।
पिछम भोम में भला प्रगटिया,
अजमल रे घर अवतारी।।१।।
घर तंवरा रे कंवर केवाया,
रामदे थे देहा थारी ।
परदे हुवा जद पीर केवाणा,
इष्ट इडक आसत धारी।।२।।
कर कर भाव पांव पीरा रे,
आवे वर्ण छतिसो सब सारी ।
महिमा घणी धणी ने ध्यावे,
उबारी आसापुरी अजमतधारी।।३।।
कीरत कंवर करे संत केता,
ओड़ग करे अनन्त थारी ।
ध्यायो जको मिले धन रोजी,
गायां मान बंधे भारी ।।४।।
नव निज पीर पुरूष दशवे थे,
कलयुग भली कला सारी।
शरणे आवो साध रहे सोरा,
पूज्या पाप कटे भारी ।।५।।
दुनिया दार विचार नजाण्यो,
अलख अलभ थारी गम न्यारी ।
लिखमी कहे कि जाण थारी क्रिया,
आयो शरण थको थारी।।६।।
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