म्हारी शरम राजरे शरणे,
कलम राखज्यो जनम सुधार।।टेर।।
शारद माय भाय आई म्हारे,
रिदसिद द्यो गणपति दातर।
राम कंवर सूं ताली म्हारे,
रिद्ध रोजीरा भरिया भण्डार।।1।।
नव अवतार धरियो नारायण,
दशवां में थे ही हो देव मुरार।
मार कालिगा ने कलजुग मेटो,
श्याम सन्ता ने लेवो उबार।।2।।
द्वारका में रणछोड़ केवाया,
मथुरा में रसिया कृष्ण मुरार।
दशवीं कला कल में पीर जी,
प्रकट हुवा रूणीचे रामकंवार।।3।।
मोर छाय मारे शीश बिराजे,
शरण आया रो सांचो आधार।
मैं हमारी मोटी पाई पदवी,
पण्डित केवाणो नांवरी लार।।4।।
अनन्त नांव एकोई अवगत सेे,
सो में मोही करतार।
परस्या पुरूष दुरस होय दरस्या,
जो जाण जपे होय होसियार।।5।।
दयाकरी गुरू दुबद्या मेटि,
देहो बिचे दियाे दीदार।
भाजीया भरम करम किया काने,
सत् शब्दो में लाया विचार।।6।।
सिवरण करिये सुख भर रहिये,
अवगति लीला अगम अपार।
लीन होय लिव लायो माली लिखमा,
भगवान भरोसे लेवे उबार।।7।।
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