हो अजमल सूत अजमत थारी,
भक्तां रा बिरद बधावण तारण,
सुदबुध रो रातारि।।टेर।।
सिंवरू सिद्ध रामदे राजा,
धरूं ध्यान इकतारी।
ओलखियो शब्द अंतर जामो,
परचे पर उपकारी।।1।।
रामा पीर थारे पावां आवे,
सेजड़े बहु नर नारी।
मन्छा जिसी पूरबो आशा,
एबातां इधकारी।।2।।
अन्वी नीवे नांव धणियाणेे,
हितकर हर दरबारी।
सकल कला सांचो सिद्ध राम,
साधु रो सिणगारी।।3।।
द्वारका रा देव आय अजमल घर,
गोविन्दो गिरधारी।
मन जाणु रावण रिफ होता,
गोकुल गौवाचारी।।4।।
पीर थारे चरण शरण सेजा सुख उपजे,
दुबद्या मिटे हिया री।
लिखमा लाग करो हरि सेवा,
जूनो धणी धजाधारी।।5।।
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