खामीड़ा लाल भर्यो बोल मेरा भाई,
हरि गुण गाई।।टेर।।
काया नगर रो हंस राजा,
बीरा हरि सूं हेत लगाई।
सावणु साख थारे आछी निपजे,
फेर उन्हालू बाई।।1।।
उर्द्ध मुखी काया रो कुओ,
खिणायो जरणा री चाट जड़ाई।
आवागमन री भूण चड़ायो,
कर्मा री कड़ रोपाई।।2।।
सत्य धर्म दोय धोरी जूता,
सुर्त पिराणी जेलाई।
प्रेम पारसियो नाली ना भीरी,
बंक नाल धोरे ल्याई।।3।।
चितरो चरस्यो प्रेम पंजाली,
लिव री लाव लगाई।
सत् शब्दां रा बारा ठोलिया,
दोनों साख सवाई।।4।।
कर्णी री कस्सी दांव रो डांडो,
प्रेम पाणतियो पाई।
कह ''लिखमा'' मैं निजरां देखी,
बारे कण नेपे घर आई।।5।।
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