कर्ता कुदरत पर बलिहारी karta kudrat par balihari guru maaro kari



कर्ता कुदरत पर बलिहारी,
गुरु म्‍हारो करी रचना सारी।।टेर।।


काया रो कुवो कियो कारणीगर,
तू जाणे गम थारी।
मांही अर्ट मांडियो मोजी,
बागवानी विधि सारी।।1।।

कर्म कवाड़ो भेल मालीगर,
अर्ट कियो फल धारी।
कला रो अर्ट कला सूं फिरतो,
जोहे कीमत कर्तां री।।2।।

शक्ति सत्ता सूं बहे बग धारण,
राखो श्‍याम सतारी।
गम गोदल बैठ मन हाली,
हांके हुक्‍म हजारी।।3।।

सेस भाल सांसा धड़ बान्‍दी,
नीर भरियो ओमकारी।
बहतो पाणी प्रेम पाल से,
कुदरत सूं पीये क्‍यारी।।4।।

काया बाड़ी जोय जुगत कर,
फल लागा इकतारी।
गुरु प्रताप फलसी ''लिखमा''
सुण सी नर सचियारी।।5।।

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