जागो जूनी कला गोसाई भीड़ पर्या भगतां रे भेला jago juni kala gosai bheed parya bhagta re



जागो जूनी कला गोसाई,
भीड़ पर्या भगतां रे भेला संकट मेटे सांई।।टेर।।


दरगा अलख मदीने अल्‍ला,
झूजा रेर गुसांई।
नाम धर धोखाई,
धामो कदम रसूल केवाई।।1।।

कहे हरणाकुश सुण पेलादा,
अब कहां तेरा सांई।
कहे प्रहलाद आदि यहां उबो,
जहां जोसो हरिजाई।।2।।

पार ब्रह्म गुरू प्रगट हुआ,
खड़ग खंभ रे मांही।
होय नरसिंह रूप संहारयो दानव,
पाडयो पकड़ भुजाई।।3।।

तारासूं  हरिचंद हठ लाग्‍यो,
सत सूं श्‍याम मनाई।
मांगियो मोल हुवा हरि मालवा,
तारादे रे तांई।।4।।

पांडव पांच द्राेेेेपती कुन्‍ती, 
गुरू दुर्वासा वांही।
तस रो आंबो सफल फलाणो,
विप्र जीमाया ज्‍यांही।।5।।

बावन होय बली छल आया,
भोम मांगबा तांई।
पीठ मपाई जद प्रसन्‍न हो,
मिल गया सेवक तांई।।6।।

सायल सन्‍त सालेसूं दूरी,
भगवत सूूणी भलाई।
आरोधे प्रभु साध संतारे,
जस्‍यां किया जिनाई।।7।। 

धोख धणी रूपादे आई,
 धारू घर बीज दिनाई।
कोम्‍यो माल कहे कामण रे,
सोगा सिलायो सांई।।8।।

फूल सूल बीण लाई हु सखरा,
 गूंथ माल तुम तांई।
जीवण भग गई तीजा में,
कावड़ बोलाेे कांंई ।।9।।

 फिर फिर राणो फिरो,
अबेला गम कर गुजरा नांही।
रूपो कहे परच्‍यो देवो प्रभु,
माल मानली नांही।।10।।

भेख्‍या माल थाल ठठ भरि‍या,
सादे आवो सांई।
सांच भरोसे सिमरया माली लिखमा,
डिगमिग डोलि‍ कांई।।11।।

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