अलख लख जुगती मुक्ति री पाई alakh lakh jugti mukti ri paai bhav sagar bich



अलख लख जुगती मुक्ति री पाई,
भवसागर बिच बह जात।
मोही सतगुरू बांह पकड़ाई,
गुरूजी म्‍हाने ठीक बताई ठाई।।टेर।।

 

गम गणपत शारद दिवी सोजी,

सहजां सुद बुद पाई।

मनमें उचरया ब्रह्म बिचारी,

सत् शब्‍दों ओलखाई।।1।।


शब्‍द विचारया सर्व सुख उपज्‍या,

विधन हथीमन कांई।

उपज्‍या भाव भरम जद भागा,

रिज रामानांव लिव ल्‍याई।।2।।


मिटगी दुरायत एकांंयत बरती,

दूयूं सायत अंग आई।

तिंवर मिट्या जब ताली लागी,

दरस्‍या हरि दिल मांही।।3।।


सुख सागर सुखमणरे घाट,

सांपड़ होय उजलाई।

सिखर महल बिच आलम,

मालम बायलरी खाई।।4।।


भवसागर बिच भगवन्‍त तारी,

सत सिवरण करताई।

राख भरोसो भगवन्‍त रो,

लिखमा तारेगा तुझ तांई।।5।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...