भजमन गिरधारी गोविन्दा,
सालगराम सोही सब सामिल,
और धोखे का धन्धा।।टेर।।
कर्ता पुरूष किया कमठाणा,
कर पांच तीन का धंंधा।
धंंधा में सब जुग भरमन्दा,
जो बिच अलख लखन्दा।।1।।
करस राम होय जग परसायो,
खेल्यो कृष्ण कला कर छन्दा।
राम कहुं तो है सब मांही,
सब जग ध्यान धरन्दा।।2।।
नवअवतार धारपति निजपति,
सोही रूप दरसण खेलन्दा।
दाणु देव सेव एक साहिब,
दोय कहे सो अन्धा।।3।।
हे विश्वास साध की सेवा,
जब देेेवा दरसन्दा।
दरसिया देव दया सतगुरू को,
मिटग्या भरम करमन्दा।।4।।
अलख कहुं पर लख्यो न जावे,
अपरम पार परमन्दा।
बोलत जोत जगत बिच ठावो,
सिंवरे सन्त समझन्दा।।5।।
समझ शब्द मिल तन मन ताली,
सन्त रूप बिना रीझन्दा।
लगी लगन कहे यू लिखमो,
हृदय हरख रहन्दा।।6।।
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