एक मन ध्‍यावे सोही फल पावे सरसी काम ek man dhyave sohi fal pave sarsi kaam



एक मन ध्‍यावे सोही फल पावे,
सरसी काम जिनाईन्‍दा,रामो पीर पूजाईन्‍दा।।टेर।।


सुरत मांत सारदा सिंवरू,

गणपत देव मनाईन्‍दा।

राम कंवर राजेश्‍वर सिंवरूला,

पाप झर जाईन्‍दा।।1।।


दरीता देता थरपिया थाणा,

हाकल अदल चलाईन्‍दा।

देव कला दुनिया में मालूम,

परतक परी केवाईन्‍दा।।2।।


साहुकार सांकड़े पडियो,

समन्‍दो बीच मनाईन्‍दा।

हुक्‍मपाल बंधाई पाणी पर,

बोयता ने पार लगाईन्‍दा।।3।।


अंधला आवे अखियांं  पावे,

को‍ढिया रा कलंक झड़ाईन्‍दा।

बेड़ी कटे देवरो डिटो,

प्रगट पर्चा साईन्‍दा।।4।।


द्वारका तणो देवता सागे,

मत भूलो भरमाईन्‍दा।

दुरमत मेट देवरो परसे,

पाप बिलेह हो जाईन्‍दा।।5।।


सुद बुद भई साधा री संगत,

गंगा गरीबी नन्‍हाईन्‍दा।

लिखमो कहे पेल को चाकर,

ध्‍यान धरियो जसगाईन्‍दा।।6।।

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