होय होशियार परमगुरु आगे hoy hosiyar param guru aage dil saabat phir



होय होशियार परमगुरु आगे,

दिल साबत फिर डर ना क्‍या।।टेर।।


करमा खेती धणियां सेति,

रेण अन्‍धारी सोवण क्‍या।

आ जावे मिर्गो चर जावे खेती,

कण बिना रास कूं लाटो क्‍या।।1।।


कासी पीतल हुवे सोना,

पला लगे जब पारस क्‍या।

सुखमण के घर पोरा लाग्‍या,

जाग जाग फिर सोना क्‍या।।2।।


पर घर लाय पवन होय लागी,

जिस घर बन्‍दा जावण क्‍या।

कांई भरोसो जलती अन को,

बिना मौत मर जावण क्‍या।।3।।


रुप देख मन मति डिगावो,

अबला नारी पेलां की।

सतगुरु सेन समझ कर दीन्‍हीं,

सुकृत बातां गेला की।।4।।


ऐसी सुर्त भजन में लागी,

जैसी सुर्त शिकारी की।

गुरु प्रताप सिंवरे ''माली लिखमो'',

छोड़ प्रीत पर नारी की।।5।।  

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