हो कारीगर दाता चरखो अजब बणायो,
हो अवगत अविनासी चर्खो अजब बणायो।।टेर।।
चित कर चूप कियो कारीगर,
चर्खो घड़ उपायो।
सब सेनाण कसर बिना किनो,
समझो सोही सरायो।।1।।
तन तूमण बिच कर्णी को कणियो,
सतगुरु समझ बतायो।
ताड़ी पांच पचीस कर सेठी,
बुद्धि को बन्ध लगायो।।2।।
धर्म भजन थम्भल्या शुद्ध सारण,
सूधे सूत बणायो।
क्षमा पूतली चित चमरख बीच,
शब्द ताकलो लायो।।3।।
राखे मन री माल दया दावण बिच,
सोरी बहु सवायो।
काते सूत प्रेम री पूणी,
तार ताक ले आयो।।4।।
तू कारीगर भारी हरि,
सो इकधारी, जद चख रस आयो।
''लिखमा'' लाभ ध्यान धर लाधे,
इयूं चर्खे चित लायो।।5।।
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