ज्ञान गली में होय,
रहिया राम जहुरा।
भम्बेक भाग में होय,
रहिया राम जहुरा।।टेर।।
अपणे मेल को सेल करतां,
परस्या शशि अरू सूरा।
सुखमण राणी तब भेदाणी,
बाजे अनहद पूरा।।1।।
समझ लहर बिच सब सुख आया,
पाया प्रीतम तूरा।
उन मुन आसन अजब तमाशा,
ज्या रहिया निज नूरा।।2।।
लोया विचार लार सत् जाहि।
शब्द मुक्त मच कूरा।
पाई जोई तहां राम नजूरा,
रहिया सकल भरपूरा।।3।।
हुआ निहाल सन्त जो हेर्या,
हरदम हरि हजूरा।
जहां जोई तहां राम जनूरा,
रहिया सकल भरपूरा।।4।।
हृदय हर की जुड़ी हताई,
भर्म भागिया दूरा।
अटल पुरूष सुलंगी आसका,
उघड़े आगल कूड़ा।।5।।
बोलत ब्रह्म भर्म तज भेद्या,
नेकन दरस्या दूरा।
कह ''लिखमाे'' लाली जिन पाई,
राम रटे सन्त पूरा।।6।।
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