झिकर मकर की छोड़ मान,
मन नहीं धरणा।।टेर।।
देया दिवाने की बात,
किसी कूं क्या कहना।
कोई देश दिवाना होय,
हकीकत कह देना।।1।।
जब पाया निज मूल,
सुर्त में रहिणा।
जादू मंत्र जंजाल,
तंत्र फिर क्या करना।।2।।
गमन ज्ञान की छोड़,
गरीबी आदरणा।
टेक भेख की बान्ध,
काय कूं पच मरणा।।3।।
रही ज्ञान मांही गलतान,
ध्यान हरि का धरणा।
जो चाहे निज धाम,
जीवत ही मर रहणा।।4।।
लग रही सहज समाध,
सधर पाया शरणा।
''लिखमा'' लग गई लगन,
डोर अब क्या डरना।।5।।
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