अब तू सांच पकड़ भज सांई ab tu saanch pakad bhaj saai koi kisi ka nahi



अब तू सांच पकड़ भज सांई, कुटम्‍ब सेति सासे क्‍यूं पडि़यो।
कोई किसी का नांही।।टेर।।


कुटुम्‍ब जाल मकरी ज्‍यूं जोया

तन कर उलझी मांही।

कर सिवरण कई सन्‍त सुलझिया,

तन्‍दरा तिंवर मिटाई।।१।।


एक नर आपा मांही मुड़तो बोले,

में बड़ डुबण तांई।

से होसी नरको का अधिकारी,

पड़े चौरासी मांही।।२।।


कुटम्‍ब छोड़ तीरथ फिर आवे,

भवे भमना मांही।

आतम देव लिया संग डोले,

ताको खोजे नांही।।३।।


जागृृत स्‍वप्‍न जीव भूवे,

नित सुख सुषोपत मांहि।

अब तूरिया संग लागी ताली,

रग रग हरि लिव ल्‍याई।।४।।


अणभे आई आलम ओलखिया,

अब पर्चा पिव तांई।

लिखमा लगी अखंड़ सूं यारी,

अबे अन्‍देसो कांई।।५।।. 

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