आपसो अलख पुरूष अवतारी राजा रामदे अजमल घर धारी ।
सुध बुध देवण सारी ।।टेर।।
पीर थारे शरणेे आय सकल सुख पाया,
पूजे पांव निवे नर नारी ।
आवे पांय भाव ज्यारे भगवंत,
इधकी कला तुम्हारी ।।१।।
वचन कर मेल्यो व्योपारी,
बिणज कर समन्दा पारी ।
बोयता वचन पायो,
परम गुरू समन्दा लग भुजा पसारी ।।२।।
पीर पृृृृथ्वी पर किया पसारा,
कला सहित निज सारी ।
मुलक मुलक थाणा थपाणा,
थान थापना थारी ।।३।।
धजा बन्ध धणी बणी तू,
कथा सूंं सायर सुणो हमारी।
पीहरो पूर पाख परमेश्वर,
मैं मानव मल धारी ।।४।।
हुवा निहाल झाल सेवा थारी,
मारी दुरमत दूर निवारी ।
गुरू की महर लहर लिवो लिखमा,
कृपा करी मुरारी ।।५।।
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