पीर थारी किरत सकल दुनिया में peer thari kirat sakal duniya main



पीर थारी किरत सकल दुनिया में, 

पर्चा पुंगा समन्‍द ताईं ।
जागीयो धणी जयो जग मांही ।।टेर।।


धर अवतार धणी अजमल घर, 

संता रो तारण सागे साई ।

धिन होय दाता धर्म हलाया, 

पीर कहवाया कुल मांही ।।१।।


पहिलाेे पर्चा दिबो परमेश्‍वर, 

दूध ठार धरियो ठांई ।

कुंकुु कदम मण्डिया राई आंगणे, 

अलख आय  दिवी औलखाई ।।२।।  


कृपा कर कंवर घर आया, 

स्‍वारथीयो रंग सूतो मांंही। 

हेलो कर हाजर कर लियो, 

रूदन पलटियो रंग मांही ।।३।।


रमता राम नाथ जी रे पांवा, 

आलम आज्ञा से बांही ।

दड़ी रमंतो दैत दौड़ायो, 

पकड़ पछाडि़याे पल मांही ।।४।।


साहुकार ल्‍यायो लद मिश्री, 

कवर बूझियो है काही ।

दाख्‍या लूण कंवर कह होसी, 

मनसा जिसी दशा मांही ।।५।।


हसिया लोग सामने सासा, 

खोले गूण लूण मांही ।

साह पुकारत पांवा आयो, 

कीड़ी पर कटकी कांई ।।६।।


हंस कहयो कंवर होय जावे मिश्री, 

जाय जोवो कलपो कांई ।

सुणिया वचन सांई सत जाण्‍या, 

हर्ख ओम अपज्‍यो मन मांही ।।७।।


डूबत डरपर दाह पुकारे, 

माल ज्‍यान समुन्‍द्र मांही ।

सुणिया वचन साहरे साथे, 

साह तारिया छिन मांही ।।८।।


मन उणारथ बाई आयो, 

बिलखोंं बदन बाल तांई ।

हर्ख करते विघन उपज्‍यो, 

नेणा नीर ठमे नांही ।।९।।


बगस्‍यो बाज बीर बाई ने,  

जाय जोवो कलपो कांई ।

दिल में राख दाख मती औरा, 

बालो साद करे मांही ।।१०।।


मेहमा सुण मुलतान मुलका रा, 

आया पीर मिलन तांई ।

मिलिया पीर हुई मनवारा, 

मिजमानी पीरां तांई ।।११।।


बूटी बोहत पीबु पीर पूरी, 

सरा जाम साथे नांही ।

बात करत कुदरत सूंं लाया, 

सारा जाम सबकर मांही ।।१२।।


पीर मक्‍के जाय यू फरमावे, 

पीर प्रगटिया कलु मांही ।

हाजर नाजर पर्चा देवे, 

सागे सायब है वांही ।।१३।।


हिन्‍दू बहु पीर माने परच्‍यो दीयो, 

कूंड़ी़ घोटा दिया वांही ।

मानस रूपी भोजन कराया,  

अटल जोत देखी वांही ।।१४।।


कहे नेतलदे सुणो कंवरजी, 

पीर हुया हो कुल मांही ।

पीर कहावो पताेे बतावो, 

परदे आशा है कांई ।।१५।।


पीर फरमाया हाजर आया, 

सादो शादी करे मांही।

भाग्‍या भ्रम कहे पटराणी, 

आई अलख थारी ओलखाई ।।१६।।


बछिया सुंं वो महर कर जोवो, 

पटराण्‍यांं पीरां तांई ।

पर्चो गुपत कहुं कांई प्रगटे, 

दातण करो दया नांही ।।१७।।


दीनी छांट दयाकर दाता, 

बछियो उठ मिलियो माई ।

कुल तारण थाने कहे वीरमदे, 

भाग भला ज्‍यारे ए भाई ।।१८।।


पर्चा किस्‍या किस्‍या जस गाउ, 

पर्चा अनन्‍त किया कहुं कांई ।

चढ़ती कला चहु दिश चावा, 

सिवरयो सब घट ही सांई ।।१९।।


थक्‍यो पेलड़ो जोय दया कर, 

हर दरस्‍या हृदय माई ।

गुरू खिवजी लिखमी जस गावे, 

सिवरयांं रिद्ध रोजी पाई ।।२०।।  

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