मन रे मेला री चादर धोय, बिन धोया दुख उपजे,
हार जनम जावे खोय ॥टेर॥
सिवरू देवी शारदा,
हिवड़ा मे अजमल होय ।
किर्ता ने खिनाई बावड़ी,
नीर गंगोदक होय ॥1॥
तन मन री मटकी करू,
करणिरी कुंडी होय ।
ज्ञान गुष्ट घोटा करू,
सुर्त सिला पर धोय ।।2।।
झीणी चादर प्रेम री,
मोल अमोलक होय ।
नाने धागे नाम री,
लीज्यो कण कण पोय ।।3।।
रोहिडो रंग रंग फूटरो,
फूल अजब सिर होय।
उबो सूखे उजाड़ में,
कली न बीने कोय ।।4।।
बाहर चंदन सांवला,
भरम न जाणे कोय ।
खोदन पर मल नीसरे,
अवगुण पर गुण होय ।।5।।
भंवर गुफा भंवरी भवे,
ज्ञान अखाड़े होय ।
गुरू खींवजी लिखमी कहे,
धोसी बिरला कोई ।।6।।
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