ये माया तेरी बहुत कठिन है राम । टेर।
रक्त मांस हड्डी के ढेर पर,
मढा हुआ है चाम।
देख उसी की सुन्दरता,
हो जाती नींद हराम ।।१।।
करता नित्य विरोध क्रोध का,
कहता बुरा परिणाम।
होता क्रोधित स्वयं तो होती,
वाणी बिना लगाम।।२।।
मृत्यु देखता है ओरों की,
रोज सवेरे शाम।
भवन बनाता ऐसे जैसे,
हरदम यहाँ मकाम।।३।।
राजेश्वर प्रभु तुम मायापति,
करुणानिधि है नाम।
नाथ नीवेरो अपनी माया,
जीव लेवे विश्राम।।४।।
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