नर की तो नार बणादे सुणज्‍यो कुदरत की बात nar ki to naar banade sunjo kudarat ki baat

 

सुणज्‍यो सुणज्‍यो कुदरत की बात भाया मारा रे।

हरि जी लिख्‍योड़ो व्‍हे सो ही होवसी।

नर की तो नार बणादे भाया मारा रे।

कदी तो हंसे न कदी रोवसी।।टेर।।

 

पहले की एक बात बताऊ भाया मारा रे।

भंगास्‍वान राजा तो धर्मी होविया।

भंगास्‍वान के कंवर नहीं जनम्‍या भाया मारा रे।

कंवर के कारण तो राजा रोविया।

कंवर के कारण यज्ञ बतायो ऋषि राजा ने,

यज्ञ तो करण राजा लागियो ।।1।।

 

अग्निष्‍टूत यज्ञ में इन्‍द्र ने,

भाग कोनी भाया मारा रे।

कोप तो कीनो जी इन्‍दर देवता,

यज्ञ की कमी देखण इन्‍द्र लागो सा।

कमी ना मिली यज्ञ के मायने,

यज्ञ का प्रताप से सौ सौ बेटा हेग्‍या सा।

कमी ना राखी सा कोई बात की,

राजी खुशी राज करण राजा लाग्‍या सा।

इन्‍द्र राजा के मन नहीं भाविया ।।2।।

 

एक दिन राजा जी जंगल माये चाल्‍या जी,

शिकार खेलने राजा निसर्या।

बदलो लेबा को औसर देख्‍यो इन्‍दर राजा जी,

इन्‍दर तो राजा ने मोह में डालियो।

इन्‍दर को मोयोड़ो राजा घोड़ा ऊपर बेठो सा,

इधर उधर भटकण लागियो ।

भूख सतावे अब प्‍यास लागे भारी सा,

लातरियो थाक्‍योड़ो राजा डोल रियो ।।3।।

 

घूमत घूमत ससरवर एक देख्‍यो सा,

घोड़ा ने पाणी पाइने बांधियो।

खुद राजा सरवर माये पाणी पीबा उतरियो सा,

डूबकी लगाई सरवर मायने।

नर से तो नार जट बणग्‍यो राजा जल में सा,

किकर जाऊ सा नगरी मायने।

राणिया और बेटा के आगे किण विध जाऊ सा,

हांसी होवेला दुनिया मायने ।।4।।

 

डरतो डरतो राजा नगरी माही पहुच्‍यो सा,

नगरी का लोग अचाम्‍भे आविया।

राज-पाट सब सूप्‍यो बेटा ने,

बन में जाबा की राजा सोचियो।

बन माये जाय तपसी के राजा रहग्‍या सा,

तपसी की बणगी सा राजा भारज्‍या।

एक सौ पुत्र राजा जणिया जंगल माये सा,

सौवां ने लेइने राजा निसर्या ।।5।।

 

आपणी नगरी में राजा पाछो जावे सा,

पेली का बेटा ने जा बतलाविया।

नर हो जदी थे सौ ही बेटा जनम्‍या रे,

अब नारी के बेला भी सौ ही जनमिया।

आपस में थे तो हेग्‍या भाई-भाई  रे,

राज करो ने हिलमिल साथ में।

दो सौ भाई राज करण लागा प्रेम से,

इन्‍द्र तो देखी न मन में कोपियो ।।6।।

 

बामण को रूप बण चाल्‍यो इन्‍दर देवजी,

दौ सौ ही बेटा के पहुंच्‍यो पास में।

न्‍यारी न्‍यारी माता के थे जनम्‍या दौ सौ साथी रे,

भाई–भाई तो कुकर बाजीया ।

कश्‍यप जी के देव और रागस दोनों जनम्‍या सा,

न्‍यारी मां वा के न्‍यारा ही बाजीया।

तपसीड़ा का बेटा ने राजा कुकर कीनो रे,

थोड़ा तो सोचो रे मन रे मायने ।।7।।

 

बामण का केबा से भाई-भाई लड़बा लाग्‍या रे,

कट-कट तो मरग्‍या रे रण के मायने।

तपसी राजा की हालत वा की वा ही हेगी सा,

ठेट को चाल्‍योड़ो रहग्‍यो बापड़ो।

इन्‍दर पाछो बामण बण ने पहुंच्‍यो तपसी राजा के,

रोवता राजा ने जा बतलावियो।

रोवत-रोवत राजा जी सारो हाल सुणायो जी,

नारी बणगी ने बेटा लड़ मर्या ।।8।।

 

बामण बणियो इन्‍दर बोल्‍यो सुण ले राजा मारी रे,

देवा में बाजू रे इन्‍दर देवता।

मारे मन उपरान्‍त थे तो कीदो जग भारी रे,

दु:ख पायो रे इण कारणे।

इन्‍दर की तो बात सुण राजा माफी मांगे सा,

माफ तो करावो इन्‍दर देवता।

बेटा की खातिर यज्ञ तो कर लीनो जी,

अब राजी होवो ने इन्‍दर देवता ।।9।।

 

राजी हेग्‍या इन्‍दर, बोल्‍या मीठी बाणी सा,

कस्‍या तो बेटा ने कर दू जीवता।

नर का जायोड़ा कन नारी का जायोड़ा,

सांची कह दे मन की बात ने।

नारी का जायोड़ा जिन्‍दा कर दो इन्‍दर राजा जी,

माता का हिवड़ा का बेटा लाड़ला।

ऐ ले थारा सारा बेटा करदू जिन्‍दा राजा रे,

ओरी छावे जो मन में मांग ले ।।10।।

 

मर्द पाछो बणबो छावे चावे राजा मारा रे,

मर्द तो बणा दू पल के मायने।

नहीं नहीं मर्द नहीं बणस्‍यू राजा इन्‍दर वो,

मर्दा में मजो तो मैं नहीं मानियो।

नारी बण ने भोग में भोग्‍या इन्‍दर राजा रे,

नारी का मजा तो नारी ही जाणसी।

नारी ही बणयोड़ी छोड़ जावो इन्‍दर राजा वो,

नारी में सुख है जो नर में कोयने ।।11।।

 

एक दिन जेठल बात याही पूछी सा,

बात तो पूछी सा एक तान की।

सरशैया पर सूता सूता भीष्‍मजी बतलाई सा,

बात तो बतलाई अनुभव ज्ञान की।

महाभारत के मायने कथा या तो आई सा,

अनुशासन पर्व दयाधर्म के मायने।

गांव करेड़ा में माली भैरू गावे जी,

शास्‍त्र बचना ने मन में धारज्‍यो ।।12।।

 

तर्ज- लागो लागो जेठ असाढ़ कंवर तेजा रे

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