केवे राजा की मरयाद परजा
पालन की,
कहे राजा को अधिकार परजा
पालन को।
यो राज धर्म आधार शासन
चालन को ।।टेर।।
शंख, लिखित दोनों भाई रहते बन
के माय,
करे तपस्या राम की आश्रम
अलग बणाय।
नदी बाहुदा तीर, परजा पालन...।।1।।
एक दिन लिखित मुनि शंख के
आश्रम आय,
बड़े भाई के आश्रम से तोड़
फल खाय।
तब शंख गये थे बाहर....
।।2।।
लिखित जब फल खा रहे शंख
पहुंचे आय,
क्रोध कर यूं शंख कहे
किसको कह फल खाय।
थे चोरी किनी यार
....।।3।।
जा राजा के पास में सभी
बात बतलाय,
सजा चोरी की दीजिये दण्ड
धर्म चित लाय।
अब चला राजा के द्वार
....।।4।।
सुधुम्न राजा यूं कहे
सुणो लिखित माराज,
माफ किया मैंने आपको और
बतावो काज।
देवो दण्ड पाप अनुसार
....।।5।।
तब राजा ने लिखित के दीने
हाथ कटाय,
चोरी का फल पायके शंख के
आश्रम आय।
कह दिया सभी समचार
....।।6।।
कहे शंख अब लिखित सुणो नदी
बाहुदा जाय,
तरपण करणा पितरों का अधर्म
मन मत लाय।
जट हो गये हाथ तैयार
....।।7।।
दोनों हाथ वापस बणे मेरी
तपस्या जाण,
शंख यू कहते भये इसमें और
न पाण।
पहले कर देते निष्पाप
....।।8।।
दण्ड देना मेरा नहीं है
राजा का अधिकार,
पितरों सहित पवित्र हुए
ऐसा मन में धार।
कहे भैरूराम विचार
....।।9।।
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