थे तो छोड़ देवो नर नार,
आलस खोटो रे।
जिऊं बिगड़े सारा काम,
भारी
टोटो रे ।।टेर।।
सतजुग के मायने,
ऊंट हुआ एक भारी।
पूर्व जन्म की बात याद कर,
करे तपस्या भारी।
ब्रह्मा देने लगे वरदान, ....।।1।।
ऊंट कहे प्रभु सुणो,
ऐसा दो वरदान।
लम्बी गाबड़ एक जोजन की,
कर देवो भगवान।
बैठो-बैठो ही भर लेऊ पेट, ....।।2।।
ब्रह्मा ने वरदान दिया तब,
ऊंट चला बन माय।
गाबड़ लमबी कर-कर खावे,
कठी आवे नहीं जाय।
वो बहुत करे आहार, ....।।3।।
एक दिनां की बात है,
लम्बी कीदी नाड़।
गुफा में मुख डालकर,
चर
रियो मूण्डो फाड़।
तब बरखा हुई भरपूर, ....।।4।।
भूखो गीदड़ को जोड़ो,
दौड़ गुफा में आय।
पकड़ ऊंट की गाबड़ी,
काट-काट कर खाय।
पाड़े ऊंट अब भार, ....।।5।।
ऊंट ने मालूम पड़ी मारी,
गाबड़ कुणी खाय।
भेली करता-करता ही,
गीदड़
गाबड़ खा जाय।
ओ तो मौत बण्यो रे वरदान, ....।।6।।
गाबड़ कटगी ऊंट की,
मरग्यो बिस्वाबीस।
आलस छोड़ो भायड़ा तो,
सहाय
करे जगदीश।
कहे भैरूलाल पुकार, ....।।7।।
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