मेरा गरू लागे मोही प्यारा,
पल में पार करे भवसागर,
है मुझ को इतबारा।।टेर।।
आदू धर्म आगली महमा,
सतगरू असंग जुगांरा।
सुर नर देव सभी आरोदे,
अवगत अपरम्पारा।।1।।
माया मोह का तीन बारणा,
चौथा धर्म द्वारा।
धर्म द्वार मारा सतगरू खोले,
सबकी निमावण हारा।।2।।
रेण दिवस का चार समीया,
चालीस बीस से न्यारा।
सन्ज्या मंजानी परा तरकाली,
सोवंग समाधी धारा।।3।।
कोइक साधू ओम सिंवरे,
कोइक साई अवतारा।
ओम सोम दोय अक्षर कहिये,
न अक्षर निराकारा।।4।।
दौलारामजी मने सतगरू मिलिया,
नाथ जी दिया विचारा।
छोगो लुहार शरण सतगरू की,
जीवत मुक्ति धारा।।5।।
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