गुरू की महिमा कही नहीं जाई।
वेद पुराण शास्त्र अरू गीता,
कथ कथ के थक जाई।।टेर।।
गुरू माला गुरू तिलक संपाड़ा,
गुरू मन्दिर देवाई।
सेवा पूजा गुरू आरती,
गुरू संध्या कहलाई।।1।।।
गरू तीरथ गरू धाम द्वारका,
गरू काशी गंगाई।
गरू ब्रह्मा गरू विष्णु शिव,
गरू रामकृष्ण लख भाई।।2।।
गरू इन्द्र गरू चन्द्र सूर्य गरू,
गरू अपवर्ग बतलाई।
सप्त लोक सुमेरू से आगा,
गरू परम पद थाई।।3।।
सुर नर असुर संतजन कह गरू,
पूसाराम लख भाई।
रामधन हंस गरू की कृपा,
चरण शरण सुख पाई।।4।।
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