आरती सतगरू की कीज्यो जी,
आरती धनगुरू की कीज्यो,
पान पतासा मिसरी मेवा,
तन मन धन अलपीजो।।टेर।।
चन्दन चौक पुराय के जी,
आसण दे दिज्यो।
हाथ जोड़ परिक्रमा करके,
चरण धोक दीज्यो।।1।।
प्रेम का दीपक नियम की बत्तिया,
ज्योति झिलमिल ज्यो।
प्रेम की नदिया बहे घट भीतर,
आनन्द रस पीज्यो।।2।।
इडा पिंगला जोय जुगत से,
घर सुखमण लीज्यो।
सोहं शब्द रटो घर भीतर,
गरूजी से गम लीज्यो।।3।।
अधम उधारण भव दु:ख तारण,
शरणो गह लीज्यो।
चतुरदास चरणां को चेरो,
भक्ति वर दीज्यो।।4।।
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