भक्‍त का सत् लेवे भगवान श्रीकृष्‍ण करे अजमास Raja mordhaj bhakt ka sat leve bhagwan sri krishna kare

 


ऐसे बोले अर्जुन नामी,

मेरी सुन लो अंतर्यामी।

अपना भक्त बना दो स्वामी।।

 

जब आवे अतबार कहने लागे हैं भगवंत

अर्जुन बन जाओ तुम संत,

मैं बन जाता हूं महंत।।

 

चले भक्तों के द्वार,

अर्जुन संग चले यदुराई,

अंग भभूति जटा छिटकाई।

अर्जुन का लीना संग चले महाराजा,

हरी राम भक्त का रोक्‍या दरवाजा।।

 

द्वारपाल करे पुकार सुनो सरकार,

खड़े दो स्वामी खड़े दो स्वामी।।

संतो के संग में सिंह गरजता नामी,

सुनते ही राजा आये चरणों में शीश नवाये।।

 

दे सिंहासन बिठाये चरणोदक शीश चढ़ाये,

कृपा करके कहो आज यहां रहो।

आपको रखूंगा मिजमान,

श्रीकृष्‍ण करे अजमास।।1।।

 

भक्‍त का सत् लेवे भगवान,

श्रीकृष्‍ण करे अजमास ।।टेर।।

 

बोले साधुजन अवतारी,

राजा सुन लो बात हमारी।

तन में सुधा लागी भारी,

जीव व्याकुल भारी ।।

 

सारी नगरी में फिर आये,

मुट्ठी भर भोजन नहीं पाये।

सबने नाम तेरा बतलाये,

सुन नृप दानी।।

 

इतनी सुनकर बोले मोरध्वज राजा,

दूध जलेबी मंगा देऊ ताजा।

आटा मंगा देऊ दाल हुकम दो हमको,

मिष्ठान दूध चावल मंगवा दूं तुमको।।

 

जब कहे मोरध्वज राजा,

बकरा मंगवा दूं ताजा।

हिरणी का मांस खाजा,

केहरी की भूख मिटा जा।।

 

यह बैरागी संत भूखा अंग छिपादे,

सिंह केसरी मेरा भूखा।

तुम हमें दिला दो चून भले ही सूखा,

बकरा नहीं खावे नार।।

पुत्र को मार तुम धरो हरि का ध्यान ।।2।।

 

राजा भक्ति में प्रवीण,

तुमने कहा हमारा कीन।

तुम तो घर में प्राणी तीन,

पूछो रानी से।।

 

राजा महलो के दरम्‍यान,

रानी सुन लो चत्र सुजान।

द्वारे ठाड़े हैं भगवान,

गिरवर धारी।।

 

संत तो मांगे रानी कंवर तुम्हारो,

सुत को चीर सिंह को डारो।

रानी जोड़े हाथ सुणो जी पिया,

धन माल कुटंब परिवार हरि का दिया।।

 

तुम ले जाओ रघुनाथ,

आपके साथ स्वर्ग जावोगे।

पिया होगा जग में नाम,

भलाई पाओगे।।

 

जब मात पुत्र समझावे,

बेटा कायर मत हो जावे।

भक्ति के  दाग लग जावे,

बैकुंठ हाथ से नहीं आवे।।

 

लड़का हो गया तैयार पिता की लार,

पहनकर कपड़ा कर अस्नान।।3।।

 

आये राजा रानी बाहर,

लीना रतन कंवर को लार।

साधु लड़का है तैयार कुछ फरमावो,

कहने लगे गरू धर धीर।।

 

लावो रतन कंवर को चीर,

देवो केहरिया को नीर।

चौका लगवावो,

संतो ने सुनाई बात यह सुन लीजे।।

 

आंसू नहीं डाले एक रानी से कह दीजे,

भूप करोति हाथ जब लीनी।

सुत की शीश तुरत धर दीनी।।

 

मौका दीना त्‍याग राजा और राणी राजा और राणी....

तिरीया का हरदा उबक निकल गया पानी।

दो फांक कंवर की कीनी,

जब निकली जान रंग बीनी।।

 

एक सिंह बलि को दीनी,

एक रंग महल रख दीनी।

रानी को रोती देख,

कंवर का लेख।।

 

संत अब करने लगे तोफान,

राजा मोरध्वज को टेरे,

भोजन नहीं करेंगे तेरे।

रानी आंसू कैसे डारे,

हम तो जाते हैं हम...।।

 

राजा हो गया लाचार,

अब कहां जाते हो करतार।

मेरे सुत को लीना मार,

साधु फरमावो।।

 

दूध जलेबी चावल मंगवाये,

षटरस भोग तुरत बनवाये।

आखिर त्रिया की जात समझकर कीना,

पानी का बर्तन रखकर चौका दीना।।

 

अर्जुन ने रसोई करी प्रेम से भरी,

कहते हैं हरि सुनो तुम राजा सुनो....।

तुम पांचों ही पातल ले ने आजा,

पनवाड़ा पांच बिछाया राजा रानी ने बैठाया।।

 

भगवत ने बचन सुनाया,

तेरा कंवर क्यों नहीं आया।

जब कहे मोरध्वज भूप,

कंवर मेरा सोता है नादान।।5।।

 

हेला अर्जुन से पड़वाया,

लड़का दौड़ महल से आया।

कंचन वर्णी जिसकी काया,

सिर पर चीरा चीरा।।

 

ठाड़े मोरध्वज के लाला,

ओढ़े रेशमी दुशाला।

गले में मोतियन की माला,

मुख में पान का बीड़ा।।

 

रुच रुच भोग लगायो गिरधारी,

अमर हो गई राजा भक्ति तुम्हारी।

मांगना हो सो मांग मुलक असमाना,

तुम मांगो सो ही देऊ राज स्थाना।।

 

राजा जोड़े हाथ और के साथ ऐसी मत कीजे,

ऐसी मत कीजे।

थारो कोई नहीं लेवे नाव नाथ सुन लीजे,

राजा को चैन जब आया मेरा मरा कंवर आया।।

 

भगवत ने रूप दिखाया पद बालीनाथ ने गाया,

रघुवीर मुनि को भजो और को तजो।

संत यह धरी हरि का ध्यान श्रीकृष्ण करे अजमाश,

भक्त का सत् लेवे भगवान श्री कृष्ण …।।6।।




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