न दूं मटकी को डाण न दूं महीड़ा को डाण na du matki ko dan gokal ka vasi kaan

 

गोकल गढ़ से आई गुजरी,

माथे दही को मटको ऐ माना गुजरी।

न दूं मटकी को डाण,

न दूं महीड़ा को डाण।।

 

गाडी वे तो लेले लालजी,

मथरा का भोला कान,

गोकल का बासी कान।

थारी बोली प्‍यारी लागे ओ,

लागे ओ लालजी।।टेर।।

 

घाल्‍यो कमर्या पर हाथ,

मारी बाला चूंदड़ फाटे ओ,फाटे लालजी।

फाटे तो फाटण दीजे,

मेला में ओरी मूलादूं ऐ माना गुजरी।।2।।

 

छोड़े न बालूड़ा मारा हाथ,

शरणाटे चूड़लो तड़के ओ,तड़के ओ लालजी।

तड़के तो तड़कण दीजे,

मथरा में ओरी मूलादूं ऐ माना गुजरी।।3।।

 

केवे न बालूड़ा मन की बात,

मारो महीड़ो कूकर लागो ओ, लागो ओ लालजी।

केवे कन्‍हैया मन की बात,

थोड़ो जावण तातो लागो ऐ माना गुजरी।।4।।

 

गावे कन्‍हैया लाल,

थारो धीणो अमर रीजो ऐ माना गुजरी।।5।।

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