मारा सतगरू है जी रंगरेज चूंदड़ मारी रंग डारी mara satguru he ji rangrej chundad mari rang dari

 

मारा सतगरू है जी रंगरेज,

चूंदड़ मारी रंग डारी।।टेर।।

 

भाव के कुण्‍ड और नैण के जल में,

दियो प्रेम रंग घोल।

चस की चास लगायके जी,

खूब रंगी है झकझोल।।1।।

 

स्‍याही रंग लगायके जी,

दियो मजीठो रंग।

धोया से उतरे नहीं जी,

दिन दिन होत सुरंग।।2।।

 

सतगरू ने चुदड़ी रंगी जी,

सतगरू परम दयाल।

सब कुछ उनपर वार दूं जी,

तन मन धन और प्राण।।3।।

 

कहे कबीर रंगरेज गरूजी,

मुझ पर हुआ निहाल।

शीतल चुदड़ी ओढ़ के जी,

हो गई मगन निहाल।।4।।

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