मन
मार सुरत ने डाटो रे,
नरभे
बणो फकीर।
छोड़
दे कपट का खेल,
बताऊ
थने तरबा की तरबीज।।टेर।।
रटना
हो तो ऐसे रटना,
दौड़
बांस पर चढ़ जावे नटणा।
सत
की बाजी खेल मारी प्यारी,
सत
मत छोड़ शरीर।।1।।
जैसे
सतिया चढ़े सिला पर,
आपके
पति की जले बराबर।
ओ
ओसर मत चूक मारी प्यारी,
लग्यो
अकाशा तीर।।2।।
सिर
पर घड़ो,घड़ा पर जारी,
हाथ
छोड़ बतलावे पणिहारी।
मुख
से बात सुरत कलशा में,
नहीं
झलकता नीर।।3।।
मगना
हाथी जल में न्हावे,
बाहर
आकर धूम मचावे।
वे
नुगरा तो भक्ति बिगाड़ी,
कियो
न सतसंग सीर।।4।।
जल
की मछली बाहर ब्यावे,
आप
रहे जल माय सुरत अण्डा पर।
धरमीदास
के भाला बहग्या,
कह गये दास कबीर।।5।।
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