घर आया सतगरू कर पूजो,
भरम से मत जाणो दूजो।
करम के देवो कूंचो,
साधू भाई नाम धरायो ऊंचो।
ऐसा फल पावो रे भाई,
ज्ञान गरीबी से।।1।।
आनन्द फल पावो रे,
भगता की सेवा में।।टेर।।
मोरधज के साधू आया,
संग माये सिंह लाया।
राजा राणी करोत चलाया,
एक फांक से सिंह जिमाया।
दूजी फांक का बालू जिवाया रे,
अरजुण की करणा से।।2।।
धन्ना भगत के साधू आया,
बीज भांत का भोजन बाणाया।
दन ऊगा का हल ले आया,
खेता माये तूम्बा भाया।
तूम्बा में मोती निपज्या रे,
वांकी अलपण भक्ति से।।3।।
नरसी ने माल लुटाया,
भाई बन्द ने मजा उडाया।
राधा राणी भगवत आया,
नानी बाई के मायरो लाया।
कपड़ा का मेह बरसाया रे,
नणदल का ताना से।।4।।
आक भाडबा नामोजी धाया,
अपणा पग पर फरस चलाया।
ऐसी मनमें करणा लाया,
पाग फाड़ पाटी बन्दवाया।
नामाजी को छपरो छायो रे,
वांके हीरा मोती से।।5।।
सेण भगत के घरे उमावो,
राजा के थे अब मत जावो।
पुन्न पुरबला भाग जगावो,
घर बैठा ही गंगा नहावो।
राजा को कोड तो मटग्यो रे,
हरि नाई बणबा से।।6।।
कबीर के घर ही नादारी,
बाण्या बामण कीदी ख्वारी।
मेलो थाप्यो बीज उजाली,
साधू आवे बजाता ताली।
कबीरा के बालद लाया रे,
वांके रूदन करबा से।।7।।
बगसोजी बीज थापी बारा,
हरदम बाजे रंग चौतारा।
बेटा ने तो काल मारा,
कहां गया अब मालक थारा।
आधा स्वर्ग से पाछो फेर्यो रे,
जरणी का बोला से।।8।।
शबरी बोर भीणबा लागी,
खाटा खाटा खुद ही खागी।
मीठा तो जीमे बड़भागी,
लछमण ने दीना त्यागी।
लछमण की मूरछा जागी रे,
सरजीवन बूंटी से।।9।।
जांके घर संता की सेवा,
वांने मलसी भगवत देवा।
जनम जनम का कटसी केवा,
अमरापुर में मलसी मेवा।
हीराराम ने महमा गाई रे,
संता की शाखा से।।10।।
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