मना रे भाई सतगरु देवजी ने ध्याले,
जनम मरण का मेटे माेेेरचां,
प्रीत पुरबली पाले ।।टेर।।
सतगुुुरु दाता वेद बन आया,
करमा की नबज दखाले।
देखी नबज समझकर दाता,
करम नाश का चाले ।।1।।
कर्म काटबा की दवा बताऊ रे,
गुरुगम ओगद खाले।
ज्ञान दड़ी पर सबद मसालो।
चेतन होय चढ़ाले ।।2।।
जत मत माये गाठो रीजे,
देख जगत मत हाले।
काम क्रोध अहंकार मेट दे,
तीनों ही त्राप मिटाले ।।3।।
आप आरोगी ज्यांरे रोग नहीं व्यापे,
अजर अमर घर पाले ।
''रामदास'' प्रीतम की नगरी,
गरुमुखी ज्ञानी कुवाले ।।4।।
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