कळपे मती काछब कूड़ीये सांवरियां की रचना रूड़ी ये भजन kachaba kachabi ki katha bhajan



:: काछबा काछबी ::

 

कळपे मती काछब कूड़ीये,

सांवरियां की रचना रूड़ी ये।

भगत का भेद भारी ये,

लेवे कोई संत उबारी ये।।टेर।।

 

दोहा:भगत बीज पलटे नहीं, जो जुग जाय अनन्त।

ऊंच नींच घर अवतरे रहे संत को संत।।

 

काछबा काछबी रहता समन्‍द में,

लेता हरि को नाम।

संत देखने बारे आविया,

कर लियो विश्‍वास।।

 

पकड़ जोळी में डाला रे,

कळपे मती काछब कूड़ीये।।1।।

 

चूल्‍हा में चढ़ाविया,

तले लगाई आग।

ऊबी जलूं मैं बेठी जलूं रे,

मारे लागे बदन में आग।।

 

कठे थारो सारंग प्राणी रे,

आगई या तो मौत निसाणी रे।।2।।

 

गणी जले तो बैठ पीठ पे,

थारा प्राण बचाय।

निन्‍दया मत कर मारा श्‍याम की,

लागे कलेजे बाण।।

 

श्‍याम गोकल को बासी रे,

आपां ने तारण आसी रे।।3।।

 

कहवे काछबो सुण ले काछबी,

हरि ने हेलो देय।

गरूड़ छोड़ हरि आवसी,

तुरत ही खबर्या लेय।।

 

श्‍याम भगता को भीडू रे,

आपां ने तारण आसी रे।।4।।

 

असल धराऊ ने ऐल लियो,

गेहरो बादल छाय।

तीन तण्‍या की झूपड़ी,

उड़ आकाशा जाय।।

 

घड़ड़ घड़ इन्‍दर गाजे रे,

पाणी वाली पोटा बाजे रे।।5।।

 

काची नींद से जागिया रे,

मोड़ी सुणी रे पुकार।

जलती अगन से तार लियो रे,

काछब ने करतार।।

 

बाणी ‘’भोजो जी’’ गावे रे,

टीकम जी राय बतावे रे।।6।।




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