मिर्गलारो क्‍या करां गुरु भाई हरियल बाड़ी चार लगाई mirglaro kya kara huru bhai hariyal baadi char lagaai



मिर्गलारो क्‍या करां गुरु भाई,

हरियल बाड़ी चार लगाई, 

साेेेहन बाड़ी चर जांई।।टेर।।


पांच पचीस मिल बाड़ी बोई,
मिर्गो चर चर जाई।
जागत मिर्गो भाग उठ जावे,
सूंता ही चर जाई।।1।।

खेत रा धणी ने मेला रुखालो,
हर हृदय रे मांही।
भर जीवन में भयो मिरगलो,
कांण न माने कांई।।2।।

सेन की सीगड़ी लिवरी बन्‍दुकां,
ज्ञान री गोली बनाई।
चितरी चमक चमके सिर उपर,
सुर्त पलिते आई।।3।।

सत की ढाल थारी मन री तखरी,
हरि सूं हाथ उठाई।
गुरु खिंवजी ''माली लिखमो'' बोले,
ममता न मार हटाई।।4।।

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