मन रे चाल कुटम्‍ब री बहिये man re chaal kutamb ri bahiye antar maay



मन रे चाल कुटम्‍ब री बहिये,

अन्‍तर मांय निरन्‍तर ही रहिये,

अवगत का सुख लहिये।।टेर।।


वाद विवाद कुटम्‍ब का कूड़ा,

बदी सूं टलकर रहिये।

मान गुमान मकर नहीं करिये,

नेकी में निज लहिये।।1।।


पाखण्‍ड प्रपंच सूं टलकर रहिये,

कुछ परमार्थ कर लेहिये।

पर हर पाप साथ स्‍वार्थ के,

दया धर्म में रहिये।।2।।


हक हिसाब होय कर हालो,

गेर हिसाब नहीं रहिये।

दीसत कुटम्‍ब कर्मा सूं कांने,

सन्‍त मता सो चहिये।।3।।


अन्‍तर मांही निरन्‍तर होय निर्खो,

निर्भय पदनिज लहिये।

मिट जाय रोग शोक सब सांसा,

मेट मगन होय रहिये।।4।।


हद में होय रहे बेहद में,

कठिन भक्ति सो कहिये।

''लिखमा'' लोक लपत सा दीसे,

रहता सूं रत रहिये।।5।।


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