हवाल फकीरी कांई फिकर,
निस दिन तन विचदे फेरी।।टेर।।
करणी हन्दा कुतक लिया संग डोले,
ज्यां सुं दुबद्या पूर बसे चेरी।
मत मुकाम मांही रहे माता,
सुर्त पकड़ घर घेरी।।1।।
खपनी पेर क्षामारी खेले,
टोपी पहर ले प्रेम करी।
वह रहे खुस्याल बाल में हाई,
ज्यां सूं कलह कल्पना नहीं नेड़ी।।2।।
वांके चेला पांच हुक्म में हाजर,
परचावे बेरी।
चित चाैैैकी पर निश्चय बैठे,
मिल रहे श्याम समझ सेरी।।3।।
अकल अखाड़े ध्यान की धूणी,
ज्यां के शब्द निवास लायो अंगरी।
हरदम रहे हजरत सूं हाजर,
निर्जन नाथ लिया हेरी।।4।।
अलख अज्ञात नहीं रूप वर्ण,
गुण वांको भेद रही ममता मेरी।
कह ''लिखमी'' कुदरत का दर है,
रब रजैया है तेरी।।5।।
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