हरिजन के हृदय बिच माला,
जांके घट पिण्ड भया उजियाला।।टेर।।
मन की तपसी जन कोई जपसी,
ज्यांके खुल गया तन दा ताला।
मन पवन प्रशण होय फेरे,
तो कटे कर्म का जाला।।1।।
तीर्थ एक गरीबी नावे,
भर्म तिलक मतवाला।
गोपी चन्दन ज्ञान का लगा,
उतरे नहीं तिलकरा।।2।1
कण्ठी बणी सील की सेजो,
भाव भक्ति धर्मसाला।
ज्ञान मंडी में गुरु गम पाया,
सतगुरु शब्द उजाला।।3।।
आतमदेव सही कर पूजे,
निस दिन सांझ सवेरा।
सुर्ति निर्त सेवा में सांची,
परसे देव द्वारा।।4।।
पांचो तार एक सुर आगे,
बाज रया इकसारा।
वह ''लिखमो'' गावे घर मांही,
रीझे सिरजण हारा।।5।।
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