गरूदेव थाकी वाणी मीठी
लागे मारा राज,
गरूदेव जी ओ गरूदेव॥टेर॥
नाम सुणायो राम को,
माथे धरियो हाथ।
बह जातो मझधार में,
ले चाल्या गरू साथ॥1॥
शंका राखे आपसे,
ज्याका फूटा भाग।
ओसर आयो हाथ में,
जाग सके तो जाग॥2॥
सतगरू से या विणती,
सुणजो दीन दयाल।
चरणां माही राखजो,
जाण आपको लाल॥3॥
कृपा हुई गरूदेव की,
सतसंग बहुत सुहाय।
नुगरा नर आवे नहीं,
गाफिल गोता खाय॥4॥
गुरू गोविन्द दोऊ एक है,
न्यारा मत बतलाय।
भैरूलाल की विणती,
गुरू से ही गोविन्द पाय॥5॥
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