भरत भाई कपि से उऋण हम नाही ।
भाई हनुमत से उऋण हम नाही ।।टेर।।
सौ योजन मर्यादा सिन्धु की,
कूदी गयो क्षण मांही ।
लंका जाई सिया सुधि लायो,
गरब नहीं मन मांही ।।1।।
शक्ति बाण लग्यो लछमण
के,
शोर भयो दल मांही ।
धोलागिरी कर पर धर लायो,
भौर होने नहीं पाई ।।2।।
अहिरावण की भुजा उखारी,
पेठी गयो मठ मांही ।
जो कहू भैया हनुमत ना होते,
कौलातो जग मांही ।।3।।
आज्ञा भंग कबहू नहीं किन्ही,
जहं पठयऊं तह जाई ।
तुलसीदास मारूत सुत महिमा,
निज मुख करत बढ़ाई ।।4।।
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