किशन भणे उरजण साम्भलो,
रंग में दोय रंग नहीं होय।
नुगरा ने स्वामी राजा न मल्या,
हरि हर न मल्या।।टेर।।
साध हिया कुण थाने जाणिया,
ज्यांरा करलो विचार।
सत धरमी गरूका लाडला,
उतरे भव से पार।।1।।
तेल कड़ाया उकले,
दरशे शशिया भाण।
दरशे पण दाजे नाहीं,
इण विध हरिजी ने जाण।।2।।
एक बून्द की पायल बणी,
सातों सायर को मोल।
इण विध जाणो राम ने,
सही हिरदा में तोल।।3।।
जल का बांदियोड़ा
कुभ हिया,
कुभ बिना जल नहीं होय।
बचना का बांदिया संत हिया,
संत बना बचन न होय।।4।।
खोद खोद धरती सेवियो,
कटवड़ सहती बनराय।
कुटक बचन संता सवियो,
और से सेइयो नहीं जाय।।5।।
एक पियालो जुग पीवे,
दूजो भाणां के मांय।
तीजो पियालो माइका संत पिवे,
चौथों चतर सुजान।।6।।
एक दीपक मन्दर जळे,
दूजो थारी काया के मांय।
तीजो दीपक संता जाणियो,
कह गिया किशन मुरार।।7।।
दोहा: सतगुरू की निन्दा करे फिर फिर नुगरो नींच।
मारग भूल्यो मुक्ति को जाय नरक के बीच।।
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