कहां से लाया ज्ञान,
कहां से लाया बाणी।
किसका धरिया ध्यान,
उगम तुम कैसे जाणी।।1।।
सतगरू चतर सुजान,
खोज कर लाया बाणी।
पूंगा विरला साद,
नाम की रोप निशाणी।।टेर।।
गुरां से लाया ज्ञान,
परा से लाया बाणी।
उनमुन धरिया ध्यान,
उगम हम ऐसे जाणी।।2।।
कुण घर उपजे ज्ञान,
कुणी घर उपले बाणी।
कौन बरण का हंस,
मुलक की कहो सेलाणी।।3।।
सुन घर उपजे ज्ञान,
गगन घर उपजे बाणी।
श्वेत वर्ण का हंस,
मुलक की यहीं सेलाणी।।।4।।
राई जैसा चन्द,
चन्द में किरण जगाणी।
उड़े जहां अनल,
पंख शहर में जोत जगाणी।।5।।
दीनी सबद की चोट,
गुरू रामानन्द देवा जाणी।
कहे दास कबीर,
सेण की सांची सेवा निशाणी।।6।।
दोहा: ज्ञानी भंवरा डूबला लोग जाणे घर में भूख।
पड़े पलीता प्रेम का जले चन्दन का रूख।।
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